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________________ - - - प्रवचनसार कणिका जघन्य ले अन्तर पड़े तो एक समय का पड़े। एक समय में असंख्यात जीव नरक में उत्पन्न होते हैं। ... नरक की वेदनाओं के बारे में विचार करते हुये शास्त्र में वताया है कि (१)प्रति समय आहारादि पुद्गलों के साथ जो वन्धन होता है वह प्रदीप्त अग्नि से भी अधिक भयंकर होता है । (२) गधेकी चालकी अपेक्षा नारकी की चाल अति अशुभ होती है । तपी हुई लोहेकी धरती पर पैर रखने से जो वेदना होती है। उसकी अपेक्षा नारकी को नरक की धरती पर चलते हुये अनंत गणी वेदना होती है। जो असह्य है । (३) जिसके पंख.. काट दिये गये हैं एसे पक्षी की तरह अत्यन्त खराव हंडक संस्थान होता है। (४) वहां भीत के ऊपर से खिरनेवाले पुद्गलों की वेदना शस्त्रकी धारसे भी अधिक पीडाकारी होती है। (५) नारकावास अंधकारमय, भयंकर और मलिन होते हैं। वहां के तलिया का भाग प्रलोभ विष्टा सूत्र और कफ वगैरह वीभत्स पदार्थों से जाने कि लीप दिया गया हो एसा होता है। मांस केश नख, हड्डियां, दांत और चमडा से आच्छादन हुई श्मशान भूमि जैसी होती है। (६) सडे हुये विलाड़ा (विल्ली) वगैरह के मृत कलेवरों के गंधले भी अति अशुभ होती है । (७) वहां का रस तो नीम वगैरह के रस से भी अधिक कडवा होता है । (८) वहां का स्पर्श तो अग्नि और विच्छू के स्पर्श से भी अधिक तीव्र होता है। (९) वहां का परिणाम तो अगुरु लघु है परन्तु अतीव व्यथा करनेवाला है। (१०) वहां के शब्द तो पीडा से तडपते हुये जीवों का करुण कल्पान्त जैसा जो सिर्फ सुनने से ही दुःखदायी होता है।
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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