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________________ -- - - प्रवचनसार कणिका: अपेक्षा आज राजा का चेहरा उत्र था । रोज की विधि होने के बाद सभामें शान्ति फैल गई। शान्ति का संग करते हुए महाराजा बोले कि, मन्त्रीश्वर ! राज्य के सब कर्मचारी हाजिर है ? जी हाँ। . फोजदार को हाजिर करो। राजाना होते ही फौजदार हाजिर हुए । ल्वप्न में भी फोजदार को ख्याल नहीं था कि मेरी पोल राजा जान जायगा। क्रोधावेश में लाल चोल बने हुए महाराजाने फौजदार से पूछा कि तुम प्रजा का रक्षण ठीकले करते हो? जी हाँ! तुमने किसी प्रकार की भूल तो नहीं की? जी ना! तुम्हारी फरियाद है कि स्त्रियों का शील लूटते हो ये बात सच है जो सच हो तो सत्य बोल जाओ। जो वातको छिपावोगे तो इस राज्य सभाके बीच तुम्हें सख्त में सख्त सजा के द्वारा सच कबूल करना पडेगा । फौजदारने भूल कबूल की । राजा का कडक हुक्म हुआ। हथकड़ी पहना के जेलमें भेज दो। जेलमें उले नमक पानीले भिजाए गए पचास फटका लगाना। मेरी आशाके विना उले खानेको भी नहीं दिया जाय। राजाके द्वारा दी गई फौजदार को हुई सजा प्रजाजनों को खूब सन्तोप हुआ। और लोग राजा की सुक्त कंट से प्रशंसा करने लगे। छ मास तक कैद में पूर कर के रोज पचास फटके की सजा सहन करते करते फौजदार की काया विलकुल क्षीण हो गई। शरीर में से खून बहने लगा। शरीर की एसा दशा देख कर के उस के कुटुम्वी जनों को खूब दुख हुआ। इस लिये उसके माँ-बाए राजा को प्रार्थना करने लगे। हे राजन् , हमारे लड़के को छोड़
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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