SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - - - - 'व्याख्यान-पन्द्रहवाँ लुटाया जाय ? उसने एक योजना वनाई। फौजदार आकर के चैन चाडा करने लगा। तव स्त्री कहने लगी कि फौजदार साहव, आज तो मेरे ब्रह्मचर्य का नियम है। इस लिये आज माफ करो। और कल आना । फौजदार विचार करने लगा कि आवती काल आने को कहती है इसलिये बलात्कार करना ठीक नहीं है। एसा विचार के चला गया । अव स्त्री अपनी योजना के अनुसार वहां से बाहर निकल करके राजभवन के पास जाफर के रूदन करने लगी। हैयाफाट रुदन सुनकर के राजा की ऊंघ उड़ गई। राजा विचार करने लगा कि आधि रातको स्त्री क्यों रो रही है? यह विचार कर के राजा नीचे आकर के स्त्री से पूछने लगा। कि तू इस समय क्यों रो रही है ? स्त्री कहने लगी कि महाराज | आप के राज्य में स्त्रियों की लाज लूटी जाती है ! उसकी भी आप खवर रखते नहीं हैं। राजा पूछने लगा कि वात क्या है ? तवं स्त्री कहने लगी । कि सुनिये इस नगरी में किसी भी नव परिणीत स्त्री को फौजदार के कुकर्म में फंसना पड़ता है। इस तरह से सैकड़ों स्त्रियों के शील इस दुष्टने लूटे हैं । मेरा लग्न गई काल ही हुआ है। इस तरह से सभी हकीकत उसने .राजासे कह दी । अव आपको जो योग्य लगे सो करो। राजा ज्यों ज्यों यह बात सुनता जाता था त्यों त्यों उसके मनमें बहुत गुस्सा आता था । उसके बाद राजा राज्य · · सभामें आकर के विचारने लगा कि आवती काल फौजदार को राज सभा में बुलाना, गुन्हा की कबूलात कराना उसके बाद कड़क में कड़क सजा देना ।... . .: दूसरे दिनका प्रभात हुआ । यथासमय राज्य सभा भरी । महाराजा. सिंहासन. ऊपर बैठे परंतु हमेशा की
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy