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________________ ११४ प्रवचनसार-कर्णिका 'पडे तो समान कुल, समान लक्ष्मी, समान धर्म आदि समान हों वहां विवाह सम्बन्ध करना चाहिए । देवलोक में भी ईर्ष्या आदि जहरीले तत्व होते हैं इसलिये वहां भी शान्ति नहीं है । दशवें गुण ठाणा से आगे नहीं जायें तब तक कपाय रहेगी ही । दशवें गुण ठाणा में सिर्फ सूक्ष्म लोभ ही है । ज्ञानी कहते हैं कि अगर हंसते हंसते मरना है तो जीवन सुधारना पड़ेगा । जन्म लेते समय कैसे जन्म लेना वह अपने हाथ की बात नहीं है । परन्तु मरना किस तरह यह तो अपने हाथ की बात है । जीवन में किये हुये कुकर्मों का फल प्रत्यक्ष मिलता हैं । एक नगर में एक राजा था। वह प्रजाप्रिय और न्यायी होने से लोगों का उसके प्रति अति सद्भाव था । परन्तु -राजा का फौजदार आचारहीन और दुष्ट था । गाँव में कोई भी लग्न करके स्त्री लावे तो उस स्त्री का शील वह फौजदार लूटता था । दस तरह से उस दुष्टने सैकड़ों .. स्त्रियों का शील लूटा । फौजदार जुल्मी होने से कोई भी उसके सामने नहीं बोल सकता था । लेकिन एला अत्याचार कवतक चल सकता था । एक समय एक धर्मनिष्ठ कन्या लग्न करके गाँवमें आई । इस कन्या के रूपकी चारों तरफ होरही प्रशंसा को सुनकर के फौजदार विचार करने लगा कि आज महान लाभ होगा । जीवन सफल हो जायगा । आधी रातको वह फौजदार उस नवपरिणीत वाई के गृहांगण में आया । फौजदार को देख कर स्त्री का पति अपनी स्त्री को सब वात कर के चला गया । स्त्री विचार करने लगी कि इस तरह से दूसरों के हाथ शील क्यों
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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