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________________ यह प्रस्तावना लिखने का आचार्य श्री का अत्यन्त आग्रह हुआ। . और मुझे भी प्रशस्त प्रवृत्ति करने की मंगलाभिलाषा जन्मी। जिस के परिणाम से संक्षेपमें भी लिखने को मैं गौरवशाली बना हूं। संक्षेप में सिंहावलोकन रूप लिख के मैं विरमता हूं। . इस सरल राष्ट्रीय भाषा हिन्दी में ग्रंथ वांच के जनता इस के सार को स्वीकार के स्वर्जीवन को उज्वल और ज्योतिर्मय वनावे यही शुभेच्छा। पुस्तक के अन्त में संपादक मुनिश्री ने अपने गुरुदेव का काव्यमय जीवन वृत्तान्त छपा के जो गुरुभक्ति दिखाई है वह अनुमोदनीय है। तथा तेओश्री के द्वारा संचित "वोधक सुवाक्य" भी सवोध प्रेरक. होने से प्रशंसनीय हैं। सिरोही श्री विजय हीरसूरीश्वरजी कविकुल किरीट स्वर्गस्थ जैन उपाश्रय १ प. पू. आचार्यदेव श्री विजय श्रावणशुक्ला पंचमी लब्धि सूरीश्वरजी पट्टालंकार आ. वि. सं. २०२४ ) विजय भुवन तिलक सूरिजी नोट :- प्रवचन सार कर्णिका, गुजराती में से साभार उधृत किया है।
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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