SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गये व्याख्यान और उनमें से भावुकज़न अवतरण करके यह ग्रन्थ छपाने का श्रम उठाया है ये फलग्राही होगा ही। . . - आजकी जहरीली हवा से नास्तिक वाद की छाया में धर्म विनुख वने वर्ग को इन व्याख्यानों का वांचन अवश्य धर्म श्रद्धालु और धर्म स्थिर बनायेगा ही। किसी भी जैन श्रमण के व्याख्यान ..त्याग प्रधान तथा संसार की वासना और विकारों से नफरत पैदा कराने वाले होते हैं। .. आज समझते हैं कि जनता के हृदय पर आधुनिक युग साधना ने पाप पोषण के घर जमा दिये हैं । विलास के सुख साधन विपुल प्रमाण में उत्पन्न हो रहे है । पाप व्यापार मनुष्यों को प्रलोभन देकर आकर्पते हैं । ऐसे प्रसंग में इन विद्वान आचार्य श्री के. व्याख्यानों का अध्ययन, मनन, निदीध्यासन अवय पथ दर्शक होगा। . ये व्याख्यानकार एक सरल और तपस्वी सादे जीवन में जीते है । किसी पुण्य प्रकृति से जहां चातुर्मास करते है वहां व्याख्यानों की अनुपम कला से जनता को धर्म में तर बोल कर देते हैं। और श्रद्धावल में सुदृढ़ बनाते हैं। शासन प्रभावक परम कारूणिक जैनाचार्य श्री मद् विजय रामचन्द्र सूरीश्वरजी महाराज के ये व्याख्यानकार प्रथम शिष्य है । और उनकी निश्रामें विनयपूर्वक आगमा दिज्ञान की प्राप्ति की है। - इस प्रवचनसार कर्णिका में कितने ही व्याख्यान रसिक और एकधारी रस धारा वर्षाती वोधक कथाओं से भरपूर है। कितने ही व्याख्यानों में सैद्धान्तिक मर्म स्पर्शक गहन वातों का दर्शन दिया है। कितने ही व्याख्यानों में द्रव्यानुयोग का विषय भी सुवाच्य और ' सरल शब्दों में सर्जा हुआ नजर आता है । संक्षेप में ये व्याख्यान वाल जीवों को वांचने पर अवश्य अंपूर्व लाभ देने के साथ धार्मिक . जीवन को जीवता सिखा देगा।
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy