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________________ यही चरित्र कि जो आत्मा का शुद्ध स्वरूप प्रकट करता है। यही श्रद्धालु वर्ग का परम पुनीत ध्येय होता है। ज्ञानी पुरूप बताते हैं कि “सोच्चा जानइ कल्याण " श्रवण करने से कल्याण मार्ग मालूम होता है। कल्याण मार्ग जाने सिवाय अकल्याण मार्ग का परिहार नहीं होता है । और कल्याण मार्ग में प्रयास नहीं हो सकता है। जैन दर्शन का यह क्रम है । पहले श्रवण फिर उसका आचरण और फिर आचरण का फल अपवर्ग मोक्ष की प्राप्ति । ___ जैन दर्शन के आगम सूक्ष्माति सूक्ष्म दृष्टि से सर्व विषयो को चर्चते हैं। वर्णन करते हैं। उनमें कितने विपय क्षेय होते हैं। कितने हेय होते हैं । और कितने ही उपादेय होते हैं । हेय छोड़ना, ज्ञेय जानना और उपादेय ग्रहण करना । ये भेद समझने से ही जीवन उज्वल और उर्श्विकरणशील बनता है ! ऐसे गहन तत्वों को जैन श्रमण विधिपूर्वक गीतार्थ गुरूओं की पवित्र निश्रा में सविनय पढ़ते हैं । और गीतार्थ गुल अपेक्षा से प्रत्येक तत्व को तीक्ष्ण तर्क युक्तियों से अध्ययन करने वालों पढ़ते हैं । परम्परा से गुरूनिश्रा में जो अभ्यास करते हैं वेही शास्त्रों के अत्याओं को जान सकते हैं समझा सकते हैं। गुरूनिश्रा के शिवाय जो स्वगम से आगम पढ़ते हैं वे अर्थ का अनर्थ करके निरपेक्ष शासन के प्रत्यनीक वनते हैं । ये प्रत्यनीक शासन को बड़ा धक्का लगाते है । और आग्रह वश स्वका ही सच है ये सिद्ध करने धमपजाड़ (कूदाकूद) करते है । . इस प्रवचन सार कर्णिक की मैं प्रस्तावना लिख रहा हूं। यह ग्रन्थ आचार्य श्री विजय भुवन सूरजी के व्याख्यान का सार है। और विश्वास है कि एक आचार्य के द्वारा परोपकार दृष्टि से दिये
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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