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व्याख्यान चौदहवाँ
१०९.
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उनकी भी सेवा करूंगा। देखो, खुद हकदार हैं, वारसदार . है; योग्य है, और प्रजाप्रिय भी है। अगर चाहे तो युद्ध करके भी ले सकते हैं। इतनी ताकत है। फिर भी पिताजी को कहते हैं कि आपकी इच्छा हो उसे आप खुशीलें दे दो। मैं उसकी सेवा करूंगा। विचारोकि रामचन्द्रजी में कितनी योग्यता है ? कितनी पितृभक्ति है ? कैसे सुसंस्कार हैं? यह आदर्श लेने जैसा है। आज तो दो सगे आई अलग हों तो नहीं जैसी (तुच्छ) वस्तु के लिये भी लड़ाई करें। कोर्ट में मुकदमा करें। और नाश हो जायें। यह है आजकी संस्कृति ।।
मिट्टी की मटकी एक हो और भाई दो हो तो एक मटकी को फोड़के दो टुकड़े करना पड़े थे आज की दशा है। कैसा विचित्र युग आया है ? विचारो! यह प्रगति का जमाना कहा जाय कि अवनतिका ? आमदनी का दरजा कम और खर्च का दरजा ज्यादा? इन दोनो के बीच में लटक के जिये इसका नाम आजका मानव ।
राज्यपाट, धन, माल मिल्कत के लिये नहीं लड़ो। वह तो सब पुन्याधीन है। हक मांग के नहीं लिया जा सकता है। ये तो योग्यता से ही मिलता है। उसमें हक मारा मारी नहीं होती है। ... क्या किसी जन्मांध वालक को परिभ्रमण स्वातन्त्र्य का हक दिया जा सकता है ? क्या किसी व्यभिचारीको आचार स्वातन्त्र्य का हक दिया जा सकता है ? क्या नादान वालक को मतदान देने का हक दिया जा सकता
है? नहीं। तो समझो कि हक योग्यता से ही मिलता है। -इसे मांगने की जरूरत नहीं है। मांगने से मिले हक को