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________________ - - प्रवचनसार कर्णिका हनूमानजी को एक हजार स्त्रियां थीं। एक समय आकाश की तरफ एक टक देख रहे थे। वहां वादल आके . . विखर गये। यह दृश्य देखकर हनुमान जी को वैराग्य आता है। जिस तरह ये वादल इकट्ठे हो के विखर गये इसी प्रकार अपना ये मानव जीवन भी विखर जायगा । . . इस लिये धर्म की साधना कर लेना यही उत्तम है। . दशरथ राजा के कुटम्व में रानियां दूसरी रानियों के पुन को भी अपने पुत्र के समान गिनती थी। इसीलिये अपन दशरथजी के कुटुम्ब को याद करते हैं । इस कुटुम्ब के संस्कारों में से थोडे भी संस्कार अपने कुटुम्ब में आ जाये तो क्लेश और कंकाशका नाश हुये बिना नहीं रहेगा। दशरथ राजा को वैराग्य आ गया। दीक्षा की तैयारी करने लगे। और रामचन्द्रजी को राजगादी सोंपने को तैयारी करने लगे। महोत्सव चालू हो गया। वहां कैकेयी विचार करने लगी कि मेरा पुत्र भरत अगर दीक्षा ले लेगा तो मेरा कौन ? चलो ने भरत को राज्य मांगू । भरत राजा वनेगा तो मैं राजमाता कही जाऊंगी। दशरथ के पास आकर के युद्ध में दिये हुये वचनों को याद कराया। दशरथने कहा कि एक दीक्षा को छोड़कर तुझे जो मांगना हो मांग ले । . भरत को राज्य दो। मांग लिया। दशरथने कहा कि.. जाओ दिया । . अव रामचन्द्रजी को बुला के दशरथने सव बात कही। तव रामचन्द्रजीने कहा कि हे पिताजी, इसमें पूछने की जरूरत नहीं है। आपको योग्य लगे उसे दे सकते हो। में जिस तरह से आपकी सेवा करता हूं उसी तरह से...।
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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