SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - .. व्याख्यान-चौदहवाँ : १०७ क्रियाओं करें तव क्रिया. भी तारकों की आज्ञा के अनुसार करें तव आत्मा घी जैसा बन सकता है। शरीर नाशवन्त' है। कव पड़ जायगा इस की कोई खबर नहीं है। आत्मा स्थिर है। सुस्थायी है। फिर भी अपन को आत्मा की अपेक्षा शरीर ऊपर राग अधिक है। . . शरीर चिन्तक मिटके आत्म चिन्तक वनना पडेगा।' सदाचारी जीवन पूर्वक श्रद्धा से आगे बढो । मोक्ष का यह राजमार्ग है। दशरथ राजा के चारों पुत्र प्रातःकाल में पायवन्दन करते थे इस का नाम सदाचार । .. श्री हेमचन्द्र सूरिजी महाराज फरमाते हैं कि जीवन में मैत्री भाव विकसाओ। जगत में कोई पापन करो और जगत में कोई दुखी न रहो । एसी मैत्री भावना तो जिस के हृदय में धर्म वस गया हो उसी के हृदय में जागती है। - घर में जो सास काम करने लगेगी तो वहू के दिलों जरूर काम करने की इच्छा होगी । और ये कहेगी कि सासुजी आप आराम करो। यह काम तो मैं कर लूंगी। लेकिन यह कव बने जव लास पहले करे तो। आज तो लाल बहू से कहती है कि तू एला कर तो बहू कहती है कि तुम्ही कर लो । भूतकाल में वहू को कहना पड़ता ही नहीं था । अपने.. आप ये कर लेती थी। क्यों कि उस समय कुल के संस्कार उत्तम मिलते थे। . .. .. आज की शालामें पढनेवाले विद्यार्थियों के पास पुस्तकों का ढेर है। परन्तु ज्ञान नहीं है। आज दुनिया में भौतिकता का जो पवन वा रहा है उसकी तरफ अपनको नहीं जाना है। जो गये तो आत्मा का विगड जायगा।
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy