SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 156
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०६ . . .. . प्रवचनसार कर्णिका व्यवहार के दो प्रकार हैं : (१) धर्मघातक (२) धर्मपोपक। धर्मघातक व्यवहार के त्यागी बने दिना धर्मपोषक व्यवहार जीवन में नहीं आ लकता है। सच्चे सुख का मार्ग अपने को खोजना पड़ेगा। चार गति रूप संसार में सच्चा सुख नहीं है। सारा संसार . सुख की अर्थी है। धर्म के अर्थी कम हैं। इसलिये सुख, नहीं मिलता है। जो सुख, चाहिये तो धर्म का अर्थी बनना पड़ेगा। देवगति में बहुत सुख होने पर भी मरना तो जरूर होने से वह सुख दुखकारी है । जगत के जीव सुख के रागी और दुख के द्वेषी हैं। सुख प्राप्त करने के लीये. जीवन में सदाचारी वनना पडेगा। नव नारद ऋषि, मोक्ष से अथवा स्वर्ग गये हैं क्यों कि उनके जीवन में लदाचार सुन्दर था। राजा के अन्तःपुर में जाने की उनको ट थी। माजाओं को और दूसरों को उनके सदाचार की खात्री शी विश्वास था। . दशरथ राम आदि महा पुरुष महान हो गये। क्यों कि इनके जीवन में सदाचार था । सदाचार का आदर्श: इनने जगतको वताया था। दशरथ महाराजा साकर. (मिश्री) की मक्खी जैसे थे। इनके अंतरंग में संसार के प्रति जरा भी मान नहीं था । संसार में कर्म संयोग से. रहे जरूर, परन्तु मन विना ही रहे थे । दूध में से घी तैयार करना हो तो कितनी क्रियायें करनी पड़ती हैं ? इसी तरह अपना आत्मा भी दूध जैसा है। इस आत्मा को घी जैसा बनाना है। कब बने ? खूब
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy