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________________ व्याख्यान-चौदहवां वात्सल्यमूर्ति भगवान् श्रीमहावीर देव फरमाते हैं कि हे गौतम, जगत के जीव वीर्यपना से कर्म करते हैं और मोहनीय कर्म को बांधते हैं। . . . . . .. वीर्य तीन प्रकार के हैं। ...... (१) बालवीर्य (२) वालपंडितवीर्य (३) पंडितवीर्य । ___ अविरतिपना ये बालवीर्य है। सम्यग्दर्शनपूर्वक संयम हो वह पंडितवीर्य । व्रतधारी श्रावक हो वह वालपंडितवाये है। . . .. .. . . मानव जैसे मानव वनके भी व्रत अंगीकार नहीं करते पलों को ज्ञानियोंने हिराया ढोरके समान कहा है । व्रत . ये मनुष्य के सिर पर अंकुश है। हाथी जैसे बड़े प्राणी को भी अंकुश की जरूरत होती ही है । तो फिर मनुष्य को अंकुश विना कैसे चल सकता है? घोड़े को लगाम होती है। लगाम खेचने के साथ ही घोड़ा सीधा हो जाता है। इस तरह से जीवन में व्रत लेने से बहुत से पापकर्मों से बचा जा सकता है। . श्रावक में द्रव्य दया और भावदया दोनों होती है। लेकिन साधु में सिर्फ भावदया ही होती है। आवश्यक क्रिया में सूतक नहीं लगता है कारण कि यह तो नित्य करना है । जन्म सूतक और मरण सूतक. में भी आवश्यक क्रिया छोड़ना नहीं है। .
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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