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________________ १०४. प्रवचनसार-कणिका नौकर परभव में दो करोड लोने का अधिपति बनता है। और सुनि को दान देनेवाला नौकर परभव में राजा बनता है। इस ले बोध लेना है कि शेठाई हो तो एसी हो। जैन शासन को समझे हुये गृहस्थी के घर में रहने वाले नौकर वर्ग सी धर्म के संस्कार से रंग जायें। एसों : की शेठाई ही वास्तविक शेठाई कहलाती है। एले श्रावक. ही मावश्रावक कहलाते हैं। . एसे भी श्रावक (नामधारी) होते हैं कि अपने नौकर तो क्या लेकिन घरके वालक भी वैरागी न बन जायें इस की तोदारी रखते हैं। एसों की भावना धर्मी बनने की अपेक्षा धर्मी कहलाने की ज्यादा होती है। एक आचार्य महाराज हर रोज तब व्याख्यान देते थे जव एक प्रसिद्ध शेठ श्रावक आ जाते थे । जब तक वे श्रावक नहीं आते तब तक व्याख्यान भी चालू नहीं होता था । एक दिवस टाइम से भी अधिक समय व्यतीत हो गया फिर भी शेठजी के नहीं आने से व्याख्यान शुरू नहीं हुआ । अन्य श्रोता ऊंचे नीचे होने लगे। जिसले गुरु . महाराजने व्याख्यान शुरू कर दिया। व्याख्यान पूरा होने . को थोड़ा समय बाकी था कि वे शेठजी आये जब आचार्य महाराजने देर से आने का कारण पूछा तो शेठने प्रत्युत्तर में कहा कि साहब, सेरा छोटा वावा व्याख्यान में आने : की हठ लेके बैठा था। उसे समझाने में देर हो गई। उसको साथ में लेकर आऊं और आपका प्रभाव उस पर .. पड़े तो वह दीक्षा लेलें । । . आचार्य महाराज समझ गये कि यह तो नाम के ही श्रावक हैं । इसलिये तुम सब भावश्रावक बनने का प्रयत्न, करना यही मनः कामना । .......... ......
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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