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________________ . ९३: - - -- - - व्याख्यान-वारहवाँ . वनमें निकले हुये रामचन्द्रजी वनमें चले गये ।। वज्रकर्ण राजा हमेशा रामचन्द्र को याद करने लगा। उपकारी का उपकार याद करना ये सज्जनता का लक्षण है। दुर्जन मनुष्य उपकारी को भूल जाते हैं। ज्ञानसार में श्री यशोविजयजी उपाध्याय महाराज फरमाते हैं कि दुःख को प्राप्त होकर के दीनता नहीं करना और सुखमें अभिमानी नहीं बनना । _ सिंहको जव खूब जोर से भूख लगती है तब वह गुफामें से बाहर निकलता है और जो मिले उसका भक्षण करके पुनः गुफामें चला जाता है । अधिक हिंसा अथवा अत्याचार वह नहीं करता है। लेकिन मानवी की पूरी जिन्दगी समाप्त हो इतनी मिलकत होने पर भी अनीति, अन्याय और प्रपंचमें से ऊँचा नहीं आता है। युद्ध के नगारे बजने के समय भी अपनी नवोढा स्त्री. और अमनचमन का त्याग करके लड़ाई के मैदान में तैयार होकर के जानेवाला ही सच्चा क्षत्रिय कहलाता हैं । उस" समय क्षत्रियाणी अपने रक्त से तिलक करके कहे कि-. विजय प्राप्त करोगे तो मैं तैतार रहूं, और अगर मृत्यु · प्राप्त करोगे तो स्वर्ग स्त्री स्वागत करेंगी। इसी तरहसे धर्म करनेवाले भी क्षत्रिय तेजवाले होना चाहिये। . . . . . आज कितनों को तप करते करते जो आनन्द आता है उससे भी अधिक आनन्द पारणामें आता है। क्यों कि एसों को अभी जैसा चाहिये वैसा तपका आस्वाद नहीं आया। - धर्मको प्राप्त हुआ आत्मा हमेशा कर्मके साथ लडाई.. करता है और वह कर्मों से कहता है कि अनादिकाल से
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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