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प्रवचनसार कर्णिकाः
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हाजिर करो। गणिका आ गई । राजाने उसे सब बात। समझा दी। वेश्याने मस्तक झुका के छुट्टी ली । राजाने दूसरी आज्ञा की, वैष्णव मन्दिर के पूजारी को हाजिर करो। आज्ञा का अमल होते ही पूजारी हाजिर हो गया।
__ अन्नदाता क्या हुक्म है ? राजाने हुक्म किया कि मन्दिर बन्द करके मन्दिर की चाबी मुझे दे जाव । पुजारी बोला जैसी आपकी आज्ञा । प्रथम प्रहर पूर्ण होने के साथमें ही मन्दिर की चावी आ गई। सोलह सिंगार सज करके गणिका हाजिर हो गई। गणिका को देखने के बाद राजा मूढ हो गया । अहा! कैसा अद्भुत रूप। देवांगना के रूपले भी चढ जाय एसा यह कामण करने वाला रूप देख करके मुनि अवश्य पिगल जायेंगे। एसा राजाने विचार किया । मेरी योजना जरूर सफल होगी एसी राजाको प्रतीति हुई । गणिका से राजाने कहा किः सुनि का किसी भी हिसाब से पतन करना है। तेरे रूपमें समालेना । जा । इसके बाद वेश्याने मन्दिर में प्रवेश किया । बाहर का ताला लगा दिया गया । चावी राजा के शयनखंड में रख दी गई।
मन्दिर में प्रवेश करने के पीछे वेश्या देखती है तो । मुनि की काया अलमस्त लगी । भर यौवन है। जो मुनिका संग हो तो वर्षों की अतृप्ति आज पूरी हो जाय। महादेव की विशाल मूर्ति के पास एक दीपक धीमे धीमे .प्रकाश फैला रहा था। इस प्रकाश के तेजमें वेश्या का रूप अधिक दिप रहा था । वेश्या धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी। मधुर गीतोंकी लहर गाती जाती थी। और मुनिके मनको चंचल करने के लिये अनेक तरह के हास्य