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________________ व्याख्यान-ग्यारहवाँ ८१ - - - - " चक्रवर्ती का वल कितना? चक्रवर्ती एक हाथ में "जीमने का काम करें और दूसरे हाथमें सांकल का छेडा पकडा हो, उस सांकल को चौदह हजार मुकुटवद्ध राजा एक साथ अपनी तमाम शक्ति से खींचे तो भी जरा भी हिल नहीं सकता है । यह है चक्रवर्ती का वल । ... .. यह वल कहां से आया ? मालूम है ? कसरत करने से आया ? अच्छे अच्छे पकवान खाने से आया? अगर इस तरह आता हो तो तुम वांकी रखो? तो कहां से आया? समझ लो कि वह वल पूर्व की तपश्चर्या से आया। निद्रा पांच प्रकार की है: (१) निद्रा (२) निद्रा-निद्रा (३) प्रचला (8) प्रचला प्रचला (५) थीगद्धी । एक ही आवाज से जग जाय उसे निद्रा करते हैं। जरा कठिनाई से खूव हिलावे तव जागे उसे निद्रा निद्रा कहते हैं । वैठो वैठो अथवा खड़ा खड़ा ऊंधे वह प्रचला कहलाती है। और चलते चलते ऊंचे वह प्रचला प्रचला कहलाती हैं। दिनमें अथवा जागृत अवस्था में करने के अशक्य एसा काम करने की शक्ति जिस निद्रामें आती है उस नगा का नाम है थीगद्धी । काम कर ले फिर भी उसकी कोई भी खवर पीछे से अपने को भी यानी खुदको भी इस निद्राले मालूम नहीं पड़ती है। प्रथम संघयनवालों को इस निद्रा में अर्ध . वासुदेव का बल आ जाता है। . .. . जहां भूख नहीं लगती, प्यास नहीं लगती, वीमारी ' नहीं होती, नींद की. जरूरत नहीं होती एसा स्थान मोक्ष है। . . .. : कांक्षा मोहनीय कर्म प्रमाद से बंधाता है। अशुभ विचारों से बंधाता है 1... : .... ... ......
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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