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प्रवचनसार कर्णिका' ।
मद आठ प्रकार के हैं। उनमें से जिस विषय का मद किया जाता है उस विषयका संयोग भवांतर में हीनः पने को प्राप्त होता है।
अधूरा घडा छलकाता है, पूरा घडा नहीं छलकाता है। पूरा ज्ञानी सागर की तरह गम्भीर होता है और अधूरा ज्ञानी उथला होता है। साधु को कोई वंदन, प्रशंसा करे तो हर्ष नहीं प्राप्त करता है और कोई निन्दा करे तो शोक भी नहीं करता है।
उपधान तप का अर्थ है साधुपने की वानगी और उपधान की माला अर्थात् मोक्षंकी माला ।
हरेक का आत्मा एक समान है, कोई भेदभाव नहीं है। मेदपना दिखाता है वह कर्मके संवन्ध के कारणसे। कर्मके संवन्व से रहित आत्मामें जरा भी भिन्नता दिखाती नहीं है।
कर्मों को उपशमा करके आगे बढ़ता है वह उपशम श्रेणी और कर्मों को खिंपा करके आगे बढ़ता है वह क्षपक श्रेणी। ___ जो साधु बनता है वह एक माता का त्याग करके' आठ माताओं की शरणमें आता है। जवतक मोक्षमें नहीं जाता तब तक अष्ट प्रवचन माता की गोद में खेलना' पडता है।
आठों कर्मों का बाप मोहनीय कर्म है। मोहनीय कर्मः की उत्कृष्ट स्थिति सत्तर कोडाकोडी सागरोपम की है। मोहनीय कर्म के २८ भेद हैं। धम : करने का अर्थ होता है मोहनीय कर्म के साथ लडाई करना । अर्थात्. अगर मोहनीय कर्म का जीतना हो तो धर्म करो।