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________________ - . व्याख्यान-नौवा ७१ करता है । और जो तुझमें गुण होंगे तो जगत तेरी प्रशंसा किये बिना रहेगा नहीं। कच्चा दही, छाश (महा) दूधमें कठोल खानेसे विदल (द्विदल) होता है, उसमें त्रस जीवों की हिंसा होती है। .. जैसे स्विच दवाने से प्रकाश हो जाता है उसी तरह कच्चे गोरस में कठोल का स्पर्श होते ही उल जीव (दो इन्द्रियादि) उत्पन्न हो जाते हैं । - घर में रहने पर भी समकिती जीच साकर (मिश्री) की तरह रहे । जिस तरह मक्खी साकर ऊपर बैठती है और जव चाहे उड़ जाती है। इसी तरह श्रावक भी घरमें रहे और जव मन हो कि जल्दी से संसार छोड़ दे। एसे श्रावक को साकर की मक्खी के समान कहा जाता है। - धन्ना शालिभद्र जैसे पुण्यशालियों को भोग-विलास की कमी नहीं थी। वे साकर की मक्खी जैले थे।। जव मन हुआ कि उसी समय आठ और बत्तीस देवांगना जैसी पत्नियों को त्यागने में इनको देर नहीं लगी। एले महापुरुषों के नाम शास्त्रमें अमिट हों इस तरह लिख गये हैं, टांक दिये गये हैं। . तुम्हें भी तुम्हारा नाम शास्त्रमें टंकाना है. ना? अगर हां कहते हो तो जीवन अच्छा बनाना पड़ेगा। .. उन्नत जीवन बनाने के लिये सामर्थ्यवान बनो. यही मंगल कामना । ... .. " सामना ... ... ... . .. .
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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