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________________ तसom TAMITIHITIHTILITORITRATENASIYATHARUITHIMALA R inte ULAPALI . IES % .. D HDHIM ESH 30M 0 maineHAR Tituantituntinutttinraatitaniumturthinrntirnarahinetition व्याख्यान-दशवाँ परम उपकारी भगवान श्री महावीर परमात्मा फरमाते हैं कि जीवकी हिंसा करनेवाला जीवकी अनुमति के बिना जीवको मारता है इससे जीवकी चोरी कहलाती है अर्थात् हिंसा करनेवाला हिंसा का पाप तो करता ही है किन्तु चोरी का पाप भी करता है। जो साधु निर्दोष भोजन करता है वह वन्धनवाली कर्म की गांठको हलकी (ढीली) करता है, अर्थात् उसके कों का वन्धन हलका होता है। जो गृहस्थ साधु को दूपित भोजन कराके गोचरी वहोराते हैं वे अल्प आयुष्य को बांधते हैं और जो निर्दीप गोचरी वहोराते हैं वे दीर्घ आयुष्य को वांधते हैं । गृहस्थ के घरमें से अगर पानी गटरमें जाता है तो गृहस्थको पाप लगता है, इसलिये भावश्रावक को उसकी व्यवस्था करनी चाहिये । यह मस्तक ऊँचा अंग कहलाता है इसलिये हर जगह जहां-वहां नमता नहीं है किन्तु समकिती का मस्तक देव गुरु और धर्मको ही नमता है । सावधावक सूर्यास्त के ४८ मिनट पहले पानी ले लेता है। उसके बाद प्रतिक्रमण करने वैठता है। वंदित्तुं याता है तव सूर्यास्त हो जाता है। प्रतिक्रमण करने के
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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