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________________ व्याख्यान-नौवाँ .. - ... (१) सामायिक, (२) चउवीसथ्थो (३) चन्दन (४) (४) पडिक्कमण (५) काउस्सग्ग (६) पच्चक्खाण । प्रतिक्रमण 'छ आवश्यक युक्त होते हैं । - चौदह राज प्रमाण लोकाकाश के पहले राजमें सात नारकी, उसकी पीछे के पांच राजमें वारह देवलोक, उसके पीछे दो राजमें नव वेयनु और पांच अनुत्तर मनुष्य तथा तिथंच रत्नप्रभा पृथ्वी के ९०० योजन नीचे और ९०० योजन ऊपर मिलकर के १८०० योजन में रहते हैं। . संयमी आत्मा की प्रशंसा करना और असंयमी की . दद्या चितना ये धर्मी पुरुप का कर्तव्य है। ___ मृत्यु तीन प्रकार से होती है : . (१) वालमरण (२) वाल पंडित. मरण (३) पंडित मरण | एक भी व्रत को लिये विना जो मरण होता है उसे वालमरण कहते हैं । थोड़े भी व्रत को लेकर जो मरण होता है उसे बाल पंडित मरण कहते हैं। और सर्व विरति पूर्वक मरे उसे पंडित मरण कहते हैं। पंडित :मरण से होनेवाली मृत्यु श्रेष्ठ गिनी जाती है। अगर यह . 'न बने. तो वाल पंडित मरण के विना नहीं मरने का. तय कर लेना चाहिये। पूरे शरीर में स्नान करना उसका नाम सर्व स्नान है। और हाथ पैर मुख आदि अवयव धोना उसका नाम है देश स्नान । साधु दोनो स्नान के त्यागो होते हैं। . जो बारह व्रत के पालन करने में तत्पर रहता है, दुखी दीन के प्रति अनुकम्पा करता है और सात क्षेत्रों में धन खर्चता है उसे महाश्रावक कहते हैं। , - महा मुनि भूमिको शय्या माननेवाले होते हैं।
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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