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व्याख्यान-नौवाँ ..
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भी वोले विना उसे खा ले उसका नाम है धर्मी । और अच्छे से अच्छे आहार की प्राप्ति में आसक्ति नहीं करें उसका नाम धर्मी । . स्वाभाविक रीत से और गुरु उपदेश दे इस तरह सिमकित की प्राप्ति दो तरह से होती है। ___ कंदमूल के भक्षण ले विकार उत्पन्न होता है इस लिये उसका त्याग करना चाहिये।
मार्गानुसारी के ३५ गुणों में से पहला गुण "न्याय से धन प्राप्त करना" यह है। . . साधु आश्रव की प्रवृत्ति के त्यागी होते हैं । जैसे किसी गाँव में पानी अल्प होने ले वहां के श्रावक साधु से पूछे कि साहब, कुआ खोदें ? तो साधु महाराज जवाब न हीं देते हैं । क्यों कि खोदने की स्वीकृति देते हैं तो आश्रय की क्रिया होती है। और नहीं कहते हैं तो बहुत से आदमी प्याले रहें । इस लिये कुछ अच्छे कामों का
साधु उपदेश देते हैं । आज्ञा नहीं देते हैं। - .:. खिचड़ी में हल्दी डाली हो तो वह खिचड़ी आयंविल ।
में थावक को नहीं खप सकती परन्तु साधु महाराज को खपती है (अर्थात् श्रावक नहीं खा सकता है)।
संसारी सुख की प्राप्ति में उद्यम करना पड़ता है। तो फिर मोक्षकी प्राप्ति तो उचस के विना कैसे हो सकती है ? धर्म तत्व को नहीं समझनेवाले तुच्छ वस्तुओं के लिये लड़ पड़ते हैं। . -: श्रावक अपने घरमें अच्छी वस्तु वनावे तो वह पहले 'जिन मन्दिर में रखता है।