SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - . . . NP व्याख्यान-नौवां श्रमण भगवान श्री महावीर परमात्मा फरमाते हैं कि . जगत के जीव कर्म करनेसे भारी होते हैं और धर्म करने . - से हलका होते हैं, (अर्थात् कर्म करने से वजनदार होते. हैं यानी संसार रूपी सागर में नीचे नीचे डूबते जाते हैं: और धर्म करनेसे. कर्माका वजन कम होता जाता है।) धर्मी आत्मा तत्व की बातें सुनकर हृदय में उतारता है। त्रस अथवा स्थावर दोनों में से किसी की भी हिंसा करने पर जीव कर्म वांधता है। .. ..: वीतराग के धर्मको प्राप्त हुआ जीव मार्ग में जाता हो और गस्ते में लाख रुपये का हीरा पड़ा हो तो भी वह नहीं लेता है। क्योंकि वह समझता है कि "नाटु पडयुं पण विसरिये" जिसकी रामायण हो जाय एसी कोई .. भी प्रवृत्ति धर्मी मनुष्य नहीं करता है। प्रमाणसे परिग्रह रखना तय करो। लोभ ये सब पापोंका मूल है। इसलिये लोभको रोकने के लिये प्रयत्नशील बनो। लोभको घटावे और संतोप को वढावे उसका नाम धर्मी । : ...... कर्म से भारी बना हुआ आत्मा दुर्गतिमें जाता है। — कर्म से हलका बना आत्मा देवलोक में जाता है और कर्मसे सर्वथा मुक्त बना आत्मा मोक्षमें जाता है। ... जो आदमी दूसरों का विगाड़ना चाहता है उसका पहले. विगड़ता है । एक आदमी हाथ में कीचड़ लेकर
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy