SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्याख्यान-आठवाँ. % - - - वन्दन करके ही बादमें पानी मुंहमें डालना चाहिये । यह भाव श्रावक का कर्तव्य है। भक्ति ये मुक्ति को खंचने वाली है। इसी लिये एक . स्तवन में कहा है कि : __"मुक्ति थी अधिक तुज भक्ति मुजमनवसी" तुम्हारे दिलमें भक्ति राग ज्यादा है कि मुक्ति राग? धम मनुष्यों को द्रव्य देव कहा जाता है । क्योंकि . वे धर्म करके देवलोक में जानेवाले हैं। - अपने स्वार्थ के लिये अन्य को ठपको (उलाहना) देने पर उसको बुरा लगे तो वह भी हिंसा कही जाती है। __ साधु अगर कपड़े मलीन हों तो ठीक किन्तु अगर श्रावक कपड़े मलीन हो तो दूषण माना जाता है। जिस श्रावक को ब्रह्मचर्य का नियम हो उसे रुई की की गादी के ऊपर नहीं सोना चाहिये। जो कोई भी प्राणी को मारने का विचार करता है। वह उसके साथ वैर वन्धन करता है । वह अगर इस भवमें वैर नहीं ले सके तो परभव में तो लेनेवाला ही है। - संसार की वस्तुयें देना वह द्रव्य उपकार है । और धर्म विना जीव को धर्ममार्ग में जोडना और धर्माराधन की अनुकूलता कर देना भाव उपकार है। " जिनेश्वर कथित सर्व वस्तु को माने और एक वस्तु 'नहीं माने तो निन्हव कहलाता है। श्री महावीर प्रभुके शासन में सात निन्हव हुये हैं। . .. किसी के ऊपर खोटा कलंक चढाने से भवांतर में अपने ऊपर कलंक आता है । इसलिये सुज्ञ मनुष्यं को विना देखा कुछ भी नहीं बोलना चाहिये ।
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy