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प्रवचनसार कर्णिका अर्थ कमाने की चिन्ता करना आर्तध्यान है। कमाने के पीछे भी शान्ति नहीं रहने ले रक्षा करने में भी आर्तध्यान की वृद्धि होती है।
लेश्या छ प्रकार की हैं :
(१) कृष्णलेश्या (२) नीललेश्या (३) कापोतलेश्या (४) तेजोलेश्या (५) पद्मलेश्या (६) शुक्ललेश्या ।
___ खाने पीने की लालसा से, बचत की लालसा से, तपस्वी कहलाने की लालसा से या तप करने के पीछे इन्द्रियों की क्षीणता से उत्पन्न होनेवाले दुख या खेदसे तपश्चर्या नहीं करना चाहिये ।
एक स्त्री नव मास दुख उठाकर वालक को जन्म देती है। और वह वालक जन्म लेने के साथ में ही मृत्यु को प्राप्त होता है । यह संसार एसा विचित्र है।
कर्म जड हैं फिर भी उसका साम्राज्य. वहुत है। वह भलभलों को बड़े बड़ों को नरक में ले गया है। इसलिये उसके साथ मित्रता करने लायक नहीं है किन्तु लड़ाई करने लायक है।
. दश वैकालिक सूत्र में लिखा है कि साधु . भिक्षा के लिये जाता है है वहां गृहस्थ के घर बहुत होने पर भी गृहस्थ वहोरावे उतना ही लेना चाहिये लेकिन मांग के नहीं लेना चाहिये। . जैले विष्टा का कीडा विष्टा में ही आनन्द मानता
है उसी तरह कामरागी जीव कामराग में ही आनन्द .मानते हैं। ..
श्राद्ध विधि सूत्र में लिखा है कि सुबह देवः गुरुको