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प्रवचनसार कर्णिका.
संतान की जैसी चिन्ता करते हो वैसी चिन्ता और सेवा संभाल की लगनी साधु-महाराजों की करने लगे तो.. विगाड़ नहीं हो और धर्स की प्रशंसा हो और साधुता स्वयं वृद्धि को प्राप्त करेगी। . . ..
तुम जीमते समय किसको याद करते हो ? सन्तानों को अथवा साधुओं को? जो साधु याद आते हों तो समझ लेना कि भाव श्रावकपना आ गया है। भगवान की वाणीको गणधरोंने गूंथकर शास्त्र वनायें हैं, इसलिये उनको सुनने ले, . समझने से और हृदय में उतारने से कल्याण होगा। - वही तपस्या वालों को घर में नहीं जाना चाहिये । और अगर जाने का मौका भी आने तो रसोडा में यानी रसोई घरमें तो नहीं ही जाना चाहिये । क्योंकि अच्छा अच्छा पकवान देख कर मन चलित होता है । और तप को दूपण लगता है । तपस्या करने वालों को उपाश्रय में समय विताना बाहिये । - छ: वाह्य और छः अभ्यन्तर इस प्रकार वारह प्रकार के तप की आराधना करनेवाले साधु होते हैं ।
अपने शासन में हुये रोहक मुनि भद्रिक परिणामी होने ले आत्मा का कल्याण कर गये। ... इन सब बातों को समझो और हृदय में उतारो यही अंभिलापा।
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