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________________ .. व्याख्यान-सातवाँ. : 3 - - . पुत्र मुनिने कहा फरमाइये । जरूर मानूंगा । माता: . साध्वीने कहा कि आप आज पोरिसी करो। एसा कह के पोरिसी कराई। इस के बाद साढ पोरिली, धुरिमडढः और अवड, एकासना, आयंबिल एसा करते करते अन्त: . उपवास करा दिया। पुत्र मुनि की शक्ति न होने पर भी माता साध्वीजी के कहने से करना ही चाहिये पसा मानः कर के उपवास कर लिया। रात को तीन सुधा लगी और क्षुधा शुधा में ही मुनि देवगत हो गये .यानी मरः गये। प्रातःकाले इस बात की खबर माता सादाजी को होती है। इसलिये ने खूब पश्चात्ताप करती हैं । गुरु महाराज के पास प्रायश्चित्त मांगती है। तब गुरु महाराज कहते हैं कि आपकी तो इससे हितलागणी ही थी इसलिये कोई दोष नहीं है। विचार करोकि हितलागणी ले प्रेरित . होकर माताने पुत्र को देवलोक में भेज दिया । : . ...अगर आव श्रावक साधु समाचारी का जाननेवाला: हो और साधु की कुछ भूल हो तो भाव श्रावक पैरों पड़. ... के कहे कि साहय, पता नहीं हो तो अच्छा । इस तरह की. नव्रता भरी बात सुनकर साधु अवश्य ही सुधर: जाता है। परन्तु आज तो किसी को अपनी भूल देखना नहीं है और लाधु की मूलको जगत के मैदान से खुली करना है। एसे श्रावक श्रावक नहीं कहलाते हैं । एसे श्रावकों: को साधुओं की भूल, देखने का और कहने का कोई अधिकार नहीं है। आज साधुओं के चारित्र. में खामी. - आ गई उसका कारण है कि श्रावक अपनी फरज चूक - गये है। .. ................ : . . . . ; :: चन्द्रगुप्त नाम का राजा था। उनके मन्त्री श्रद्धावान
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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