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________________ प्रवचनसार कणिका - - - AM .. जैसे पैर में टूटा हुआ कांटा शरीर का शल्य है .उसी तरह माया, नियाण और मिथ्यात्म ये तीन आत्मा के शल्य हैं। शास्त्र खूब पढने पर भी जब तक पाप से भय नहीं । . होगा तब तक पंडित नहीं कला सकता है । अल्पज्ञान हो फिर भी अगर पापभीरू हो तो पंडित कहलाता है। जिस में भद्रिकता होती है उसमें विनयगुण आता। है। विनयवान ढंका हुआ कहलाता है। और कपड़ा , पहने होने पर सो अगर विनय रहित है तो यह उघाडा (नागा) कहलाता है। ___जव गुरु आयें तव खड़े हो जाना चाहिये। घरमें जब वडील यानी बड़े आदमी आते हैं तव तुम खड़े हो जाते हो? पूज्य श्री हेमचन्द्राचार्यजी महाराज फरमाते हैं कि अगर भोजनमें कीडी खाली जाती है तो गले में लुकशान.. करती है। और आर जू आजाय तो जलोदर होता है। माता की पुत्रके प्रति कैली लागणी. (लगनी) होना . चाहिये उसका जरा विचार करना चाहिये । - एक माता और पुत्र दोनोने दीक्षा ली। एक समय संवत्सरी पर्वका दिन आया । साता साध्वी वंदन करने आये। पुत्र मुनि को क्षुधा वेदनीय कर्म का भारी उदय है। नवकारसी से अधिक तप कुछ भो उस से नहीं हो : सका। इसलिये संवत्सरी होने पर भी इस मुनिने नवकारली की। ...माता साध्वी कहती है कि हे महानुभाव, आप मेरी एक बात मानेंगे?.
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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