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अंत-
(३) इन्दौर वर्णन |
आदि
अंत
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सीधो करण नाइ सत उगणीस नौ की राजी रहै सारा निलीयो गाम रतनूं
अंत
सकल गुण करि अति इंदोर टघोत
साथ, भैरो जगू दोनुं भ्रात | साख, वदि पख लाग तौ वैसाख ॥ ६३ ॥ रीझ, तापर करी आखा तीज । जात, पनजी सुतन चेलो पात ।। ६३ ।। ( प्रतिलिपि - अभ यजैन ग्रन्थालय )
सोहतो, सकल देश सिरदार | है, सब नाणत
छंद पड़ी
सव सिरै सहर इंदौर साच, वर्णयुं गुनह तिनके जुवाच ।
जिण नगर मांहि धनवान जाण, वलि बुद्धि सुद्धि बलवंत वखाण ॥ १ ॥
नगर सांध वरण्या सहु, चितधर अतिही चूंप
अब वर्णन हासी करूं मानव री सुख दाय ||
संसार || १ |
( प्रतिलिपि~अभय जैन ग्रन्थालय )
(४) उदयपुर गजल । पद्य ८० । यति खेतल । सं० १७५७ मार्गशीर्ष
आदि-
जपुं
गुण
आदि इकलिंगजी, नाथ उदयापुर गावांत सघन अंब गिरिवर सघन, सिरवर राठ सेन सुप्रसन रही, प्रथम आंबेरी उमया रमन, भुवाण रतन पुर हणमंत रिधु, सो
दुवारे
करो
रमै
नमंता
नाथ ।
सनाथ ॥ १ ॥
सुर राय ।
पाय || २ ||
भोलानाथ ।
सुप्रसन्न सनाथ ॥ ३ ॥
खर तर जती कवि खेताक, भाखै मौज सुं एताक ।
राणा अमर कायम राज, लायक सुन जस मुखलाज ॥ ७८ ॥
लायक जस मुख लाज, मुनहु तारीफ सहर की । गुनियन सुन के गजल, निजर कर नेक मेहर की ।