________________
[ ९४ । (२) इसकी एक अपूर्ण प्रति महिमा भक्ति जैन ज्ञान भंडार में है जिसकी प्रतिलिपि अभय जैन ग्रन्थालय में है।
(३) कायम रासा ( दीवान अलिफखान रासा)। जान । आदि
रासा श्री दीवान अलिफखां का दोहा ।। सिरजन हार वखानिहै, जिन सिरज्या संसार । खंभू गिरतर जल पवन, नर पस पंछी अपार ।। एक जात ते जात बहु, कीनी है जग मांहि । अनंत गोत कवि जान करि, गनति आवत नाहि । २। दोम महमंद उचरौं, जाके हित के काज । कहत जान करतार यहु, साज्यो है सब साज ।। कहत जान अब घरनिहैं, अलिफखांन की जात । पिता जान बढि ना कहों, भाखौं साची बात । ४ । अलिफखानु दीवान कौं, बहुत बढ़ी है गोत । चाहुवान की जोड़ी कों, और न जगमें होत । ५। अलिफखांन के धंस में, भये बडे राजान ।
कहत जान कछु ये कहे, सब को करौं बखान । ६ । अंत
पूत पिता को देखिफै, वाढत है अनुराग । कहत खान सरदारखां, कोट वरप की आग ।
इति रासा संपूर्ण। लेखन.काल-१८ वीं शताब्दी । प्रति-पत्र ७० । पंक्ति १५ से १७ । अक्षर १८ । साइज ५॥ x । विशेप-ग्रन्थ का नाम कवि ने लेखक के लेखानुसार "रासा दिवान अलिफखां का" रखा होगा । इसमे अलिफखां की पूर्व परम्परा प्रासंगिक रूप से देकर अलिफखां का विस्तार से वर्णन है। और जैसा कि ग्रन्थ के मध्य के निम्नोक्त दोहे से स्पष्ट है ग्रन्थ सं० १६९१ में समाप्त कर दिया गया था पर कवि उसके बाद भी लम्बे अरसे तक जीवित रहा अतः पीछे के वंशजो का भी हाल देना उचित समझ कर उसने पीछे का हिस्सा रच कर ग्रन्थ की पूर्ति की।
यथा
सोरह से इक्यानुवं, अन्य क्यो इहु जान । कवित पुरातन मे सुन्यो, तिह विध कयों वखान ।