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कासी और प्रयाग की, कर की पकर, मिटाइ । सबहि को सब सुख दिये, श्री कवीन्द्र जग आइ ॥ २ ॥ सकल देस के कविनि मिलि, कीन्हें कवित्त अपार । श्री कवीद्र कीरति करन तिनमें लीने सार ॥ ३ ॥ श्री कवीन्द्र द्विज राज की लखहु चन्द्रिका ज्योति । दुनी गुनी के दुख दहति दिन दिन दूनी होति ॥ ४ ॥ पहिले गोदा तीर निवासी, पाछे भाइ बसे श्री कासी । ऋग्वेदी असुलायन साखा तिनको ग्रन्थु भयो है भाषा ॥ ५ ॥ स विषयनि सो भयो उदास, बालपना में लयो सन्यास ॥ उनि सब विद्या पढी पढाई, विद्यानिधि सुकवीन्द्र गुसाई । ६ ।।
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सवैया
तीरथ सबै अन्हाइ गाइ नसताई, जाइ कीन्हों काजु भजु देखो कैसौ सुरसरी को । है सुखदेव सुर नर मुनि दस नाम धन्य धन्य कहैं जैत वार बाजी भरीको । नवो खडं दसौं दिसि दीप दीप मैं सुजसु सोरभयो जग मैं गर्दै याकोनु छरी को । कवि इन्द्र सरस्वती विद्या बुद्धि महावर करद्यौ छुड़ायौ ज्यौं छुडायो कर करीको ||
अंत
जगत सरभयो धर्म, जलपूरी रह्यो, तामें कमल कवि इन्द्र सोहे | भक्ति पत्र ज्ञान बीच कोस जय किंजलक सील रस मोहे | सब को बंधन तीरथ में, तीरथ को बधन काट्यो सोहू सुवास उपमा को को है । श्याम राम बानी वर कहें निसि दिन प्रफुल्लित यातें जु हरि रवि जोहे || शुभ भूयात् । श्लोक संख्या ४२५१ ।
विशेष – इसमे निम्नोक्त कवियों की कविताओं का संग्रह है- सुखदेव रचित पद्य ४, नन्दलाल १, भीख २, पंडितराम २, रामचन्द्र १, कविराज ४, धर्मेश्वर २+१, कस्यापि १, हीराराम २, रघुनाथ कवि १, विश्वंभर मैथिल १, धर्मेश्वर १, शंकरो पाध्याय १, रघुनाथ की स्त्री ३, भैरव २, सीतापति त्रिपाठी पुत्र मणिकंठ २, मंगराय १, कस्यापि १२, गोपाल त्रिपाठी पुत्र मणिकंठ १, विश्वनाथ जीवन १, नाना कवि १०, चिन्तामणि १७, देवराम २, कुलमणि १, त्वरित कविराज २, गोविद भट्ट २, जयराम ५, गोविद २, वंशीधर १, गोपीनाथ १, यादवराम १, जगतराय १, राम कवि की स्त्री ३ ।
लेखन - काल - १८ वीं शताब्दी ।
प्रति- पत्र १९ । पंक्ति ८ । अक्षर ४५ से ५० | साईज १२९५ ॥ ।
(अनूप संस्कृत लायब्रेरी )