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________________ लाभ उठा रहा है परन्तु इनके साथ ही यह खयाल करता जाता है के इन सबका तात्पर्य यह है कि मेरे पास इतने रुपये आएँगे, मैं अच्छे अच्छे कपड़े पहनूँगा, गाडीपर सवार होऊँगा और उच्चाधिकारियोसे हाथ मिलाऊँगा। यदि कोई मनुष्य ऐसा नीच और मूर्ख हो जो ऐसे विचार रखता हो तो उसको इसके सिवा और क्या कह सकते है कि रे मूर्ख, तू तोल लिया गया, तू वजनमें कम निकला। सार यह है कि धनप्राप्तिके लिए अपने जीवनको अर्पण कर देना तुच्छ उद्देश्य है । विद्यार्थीका यह उद्देश्य कदापि न होना चाहिए। धन प्राप्त करना एक ऐसा काम है कि इसपर बहुतसी व्यक्तिओंका सुख और आजीविका निर्भर है। अतएव यदि केवल अपने सम्बन्धियोंके लाभके लिए आवश्यकतासे अविक भी धनप्राप्त किया जाए तो प्रशंसनीय है किन्तु सब चीजोको छोड़कर धनको ही अपना रक्षक तथा आराध्यदेव समझना एक प्रकारका पाप है। . जिस तरह धन प्राप्त करना विद्यार्थीके जीवनका उद्देश्य नहीं हो सकता, उसी तरह भोगविलासोकी प्राप्ति करना भी उसका उद्देश्य न होना चाहिए। इनसे पृथक् रहना ही उसका सर्वोपरि धर्म है। यदि कोई ऐसी वस्तु है जो विद्यार्थीके साथ कदापि नहीं रहनी चाहिए तो वह भोगविलासकी इच्छा है। यह इन्छा देखने में बिलकुल मामूली जान पड़ती है किन्तु यह एक ऐसी जड़ है जिसकी शाखा ओंसे असंख्यात अवगुण नित्य निकलते है। मैं नहीं समझता कि लोग किस कारणसे इस वातको सम्भव समझते हैं कि विद्यार्थीके साथ साथ आराम-तल्त्री भी रह सकती है। प्रत्येक मनुष्यके जीवन के लिए और विशेष कर विद्यार्थीके लिए आरामतल्लीसे बढ़कर कोई हानिकारक वस्तु नहीं। आरामतल्बी अधिकतर धनधानोंके पुत्रोंमें पाई जाती
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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