SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ है। इसका परिणाम केवल यह ही नहीं होता कि मनुष्य विद्या प्राप्त नहीं कर सकता किंतु और बहुतसी बातोंमें असफलीभूत होता है। वह प्रायः खानेपीने और रहनेसहनेमें दूसरोसे बढ़ चढ़कर खर्च करता है और रातदिन अपने यहाँ मूखों और अशिक्षितोंकी मंडली जोड़े रहता है। इस मंडलीमें या तो वे लोग होते हैं जिनको सोसायटीके नियमोंने आज्ञा दे दी है कि विना श्रम किये लोगोंके रुपयेको जिस तरह चाहें खर्च करें और अपने सुखके लिए दूसरोंके कष्टोंकी कुछ भी चिंता न करे, या वे लोग होते है जो निर्धन है किन्तु सुखप्राप्तिके लिये अपव्यय करते हैं, या वे लोग होते हैं जो दरिद्र होनेपर भी ऐसे धनवानोंकी मूर्खतासे लाभ उठाते है और उनके संग रहकर उनको बुराइयोंमें दृढ करते जाते हैं । ये तीन प्रकारके मनुष्य विद्यार्थियोंके समूहसे बाहर है; परन्तु ये विद्यार्थी समझे जाते है, इस कारण इनका इनके साथियोंपर बुरा प्रभाव पड़ता है। विद्यार्थियोंमें चाहे वे किसी जाति अथवा किसी धर्मके हों, धनवान हों, अथवा दरिद्री हों, बहुमूल्य रेशम मखमलके वस्त्र पहिने हों अथवा गाढ़ेगजीके लपेटे हों, किसी प्रकारका पक्षपात न होना चाहिए सबको समान दृष्टिसे देखना योग्य है । धर्म, कुल, जाति, घर, सम्पदाका कुछ भी विचार न करना चाहिए । जिन वस्तुओंके अभाव अथवा सद्भावका विद्यार्थियोंके श्रम और उद्योगसे कोई सम्बन्ध नही. उनके कारण कुछ विद्यार्थियोंका अधिक आदर करना और कुछका कम, यह अति निन्द्यनीय है। कोई सभ्य पुरुप ऐसा नही कर सकता । केवल दो वातें हैं जो हर समय और हर स्थानपर देखना चाहिए । एक भलाई और दूसरी योग्यता 1 ये ही दो चीजें है जिनको मिस्टर वर्कने कहा है कि 'हर जगह वड़ाई देनी चाहिए।' अतएक
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy