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________________ जीवनचरित्र। रचना भी कर डाली । परन्तु खेद है कि, असमयमें ही निर्दयी कालने । * उन्हें इस संसारसे उठा लिया। * आरामें बाबू हरिदासजीके पास उक्त रामायण सरक्षित है, और सुना है कि, बाबू हरिदासजी खय उसे पूर्ण करनेका प्रयत्न कर रहे हैं। उन्हें * हिन्दीकी साधारण कविता करनेका अभ्यास है। कविवरके पिता बाबू धर्मचन्द्रजी काशीमें वावरशहीदकी गलीमें रहते थे। आप बडे भारी धर्मात्मा और गण्यमान्य पुरुष थे । आपकी शारीरिक सम्पत्ति ऐसी अच्छी थी कि, उस समय काशीमें शायद ही कोई उ-* नके समान वलवान हो । कहते हैं, आपको क्षेत्रपाल और पद्मावती दे-1 वीका इष्ट था। एकवार गोपालमन्दिरके अध्यक्ष जैनियोंके पचायती * मन्दिरका मार्ग बन्द करनेपर उतारू हो गये । एक दिन उन सबने रातभरमें मन्दिरके मार्गपर दीवार खडी कर दी ! दूसरे दिन जब * वाबू धर्मचन्द्रजी अपने द्वारपर बैठे हुए दातोंन कर रहे थे, तव व तसे जैनियोंने आकर कहा. "वाबू साहब! आपके रहते हुए पचायती मन्दिरकी राह बन्द कर दी गई। इसके सुनते ही धर्मचन्द्रजीका धार्मिक जोश भभक उठा। वे उसी समय दातोंन फेंककर उठ खडे हुए । जाकर । देखा, तो डेड़ पुरुष ऊची दीवार खड़ी हो गई है। क्रोधमें अपने आपेको । भलकर धर्मचन्द्रजी छलांग मारके दीवारपर चढ गये। और उसे लात से धूसोसे ही उन्होंने चकनाचूर कर डाली । ब्राह्मणोने वडा हल्ला मचाया । सबके सब लाठिया लेकर धर्मचन्द्रजीपर टूट पडे । परन्तु जव धर्मचन्द्रजी उनके सम्मुख लाठी लेकर और यह कहकर कि, " देखें, आज किसकी । माने भैसा जना है " खड़े हो गये, तव किसीका भी साहस न हुआ। इ-* नके पराक्रमको देखकर कोई एक हाथ भी न उठा सका । सबके सब अ-1 पनासा मुह लेकर कलेक्टरकी कोठीपर पहुचे । इधर धर्मचन्द्रजी भी घर *आ कपडे बदलकर साहब वहादुरसे जाके मिले और वारदातका सारा हाल वयान करके न्यायकी प्रार्थना करने लगे । साहव कलेक्टरने उसी * समय आज्ञा देकर जो इस मामलेमें शामिल थे, ऐसे दो हजार आ दमियोंको गिरफ्तार कराया और मुकदमा चलाया । अन्तमें वहुतसे आ
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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