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गुरुदेवस्तुतिः।
"सत्यपंथनिरग्रंथ दिगम्बर", कही सुरी तहँ प्रगट पुकार ।। *सो गुरुदेव वसो उर मेरे, विघ्नहरन मंगलकरतार ॥१॥
खामि समंतभद्र मुनिवरसों, शिवकोटी हठ कियो अपार ।। * वंदन करो शंभुपिंडीको, तब गुरु रच्यो खयंभू भार ॥ * 1. वंदन करत पिंडिका फाटी, प्रगट भये जिनचंद उदार ।
सो गुरुदेव वसो उर मेरे, विघ्नहरन मंगलकरतार ॥२॥ श्रीमत मानतुंग मुनिवरपर, भूप कोप जब कियो गँवार । * बंद कियो तालेमें तब ही, भक्तामर गुरु रच्यो उदार ॥ * चक्रेश्वरी प्रगट तब हैकै, बंधन काट कियो जयकार। * सो गुरुदेव वसो उर मेरे, विघ्नहरन मंगल करतार ॥ ३ ॥ श्रीअकलंकदेव मुनिवरसों, वाद रच्यो जहँ बौद्ध विचार ।
तारादेवी घटमहॅ थापी, पटके ओट करत उच्चार ॥ * नीत्यो स्यादवादबल मुनिवर, बौद्ध वेधि तारामद टार ।
सो गुरुदेव वशो उरअंतर, विघ्नहरन मंगलकरतार ॥ ४॥
(१०) अथ श्रीपतिस्तुतिः।
दुमिला तथा द्वितोटक। र जस गावत शारद शेष खरो, अघवंत उघारनको तुमरो। । । तिहित शरनागत आन परो, विरदावलिकी कछु लाज घरो॥
दुखवारिधतै प्रभु पार करो, दुरितारि हरो सुखसिंधु भरो।। सवलेश अशेष हरो हमरो, अब देख दुखी मत देर करो।