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जीवनचरित्र ।
होती है और शीघ्र ही मुक्तिलक्ष्मी वशमें हो जाती है, बुद्धिवान् पुरुष सपूर्ण मगलोके समुद्रखरूप उस शान्त रसेन्द्रका अनुभवन सेवन करते हैं।"
कविवर वृन्दावनजीकी कविताकी आलोचना करनेके पहिले हम उनकी जीवनचरित्रसम्बधी दो चार बाते जो यहा वहासे एकत्र की गई है, प्रगट कर देना उचित समझते हैं । खेद है कि, अवकाशके अभावसे और काशी, आरा आदि स्थानोमें खय जाकर शोध करनेका अवसर न पानेसे हम कविवरके विषयमें अधिक परिचय देनेको समर्थ नहीं हो सके, तौभी
“पीयूषं न हि नि-शेषं पियवेव सुखायते " की उक्तिके अनुसार हमको आशा है कि, यह थोडा भी परिचय पाठकोंको सतोपप्रद हुए विना न रहेगा। 4 सुनामधेय कविवर वावू वृन्दावनजीका जन्म शाहाबाद जिलेके बारा
नामक ग्राममें विक्रम संवत् १८४८ में हुआ था । आप जगत्प्रसिद्ध अग्रवाल शके गोयल गोत्रमें उत्पन्न हुए थे। आपके पूर्वपुरुष उक्त प्राम-* में ही रहते थे । वारामें एकवाग अव तक मौजूद है, जिसे लालबाबाका
बाग कहते हैं। लालूबाबा अथवा लालजी कविवरके पितामहका नाम था। • वाराका निवास छोड़कर कविवरके वंशधर काशीमें आकर रहने
लगे थे। सवत् १८६० में कविवर भी जव कि उनकी उमर केवल १२ क वर्षकी थी, काशीमें आ गये थे। जैसा कि इस पयसे प्रगट होता है:- यानारसी आरा ताके बीच बसै वारा, सुरसरिके किनारा वहां
जनम हमारा है । और मडताल माघ सेत चौदै सोम पुष्य, कन्या । *लने भानु अंशसत्ताईस धारा है ॥ साठमाहि काशी आये तहां
सतसंग पाये, जैनधर्ममर्म लहि मर्म सब डारा है। सैली सुखदाई । भाई काशीनाथ आदि जहां, अध्यातमबानीकी अखंड बहै धारा है। * कविवरके वशका वर्णन प्रवचनसारकी प्रशस्तिमें बहुत विस्तारसे दिया है, इसलिये हम उसे यहा उद्धृत करते हैं।
मार्गशीर्ष गत दोय, और पन्द्रह अनुमानो।
नारायन विच चंद्र जानि, औ सतरह जानो। * १ गगाजीके किनारे ।२ सवत् १८४८ माष शुधा १४ सोमवार, पुप्यनक्षत्र, कन्या लस, भानु अश २७ के शुभ मुहूर्तमें कविवरका जन्म हुआ था।