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________________ वृन्दावनविलास। मुनिराजने निजध्यान में मन लीन लगाया । । उस वक्त हो परतच्छ वहाँ जच्छ बचाया। हो० ॥१५॥ जिननाथहीको माथ जो नावै था उदारा। धेरेमें परा था सो कुलिश कर्ण विचारा॥ * उस वक्त तु प्रेमसों संकटमें पुकारा । रघुवीरने सब पीर तहां तुर्च निकारा ॥ हो० ॥१६॥ । जब रामने हनुमंतको गढ़ लंक पठाया। सीताकी खबर लेनेको सह सैन्य सिधाया । * नग बीच दो मुनिराजकी लखि आगमें काया। । झट वार मूसरधारसों उपसर्ग बचाया ॥ हो० ॥ १७ ॥ ॥ रनपाल कुंअरके परी थी पांवमें बेरी। उस वक्त तुमें ध्यानमें ध्याया था सबेरी ॥ * तत्काल ही सुकुमालकी सब झरपरी बेरी। * तुम राजकुंअरकी सभी दुखदंद निवेरी ॥ हो० ॥ १८ ॥ | शिवकोटिने हठ था किया सामंतभद्रसों । । शिवपिंडिकी बंदन करो शंको अभद्रसों ॥ * उस वक्त वयंभू रचा गुरु भाव भद्रसों। जिनचंदकी प्रतिमा तहाँ प्रगटी सुभद्रसों ॥ हो० ॥१९॥ मुनि मानतुंगको दई जब भूपने पीरा । तालेमें किया बंद भरा भूर जंजीरा ॥ * मुनि ईशने आदीशकी थुति की है गभीरा । * चक्रेश्वरी तब आनिके सब दूर की पीरा ॥ हो० ॥ २०॥ १॥
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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