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संकटमोचन।
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। जैवंत दयावंत मुगुरु देव हमारे। । संसार विषम सारसे जिनभक्त उद्धारे ॥ ३१ ॥
इति गुरुस्तुतिः समाप्ता ॥ ३ ॥
अथ संकटमोचन जिनेन्द्रदेवसे अरजी।
पर। हो दीनबंधु श्रीपति करुणानिधानजी।। - यह मेरी विथा क्यों न हो बार यया लगी॥ हो०.टेक ॥ मालिक हो दो जहांनके जिनराज आप ही।
यो हुनर रमाग तुमने छिपा नहीं । विज्ञान में गुनाह मुजसे यन गया सही । 7 गरी चोरको कटार माग्गेि नहीं. दीनबंधु ॥१॥