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श्रीपरमात्मने नमः। कविवर बाबू वृन्दावनजीका
जीवनचरित्र।
जयन्ति ते सुकृतिनो रससिद्धाः कवीश्वराः। नास्ति येषां यशाकाये जरामरणजं भयम् ॥१॥ ते धन्याने महात्मानस्तेषां लोके स्थितं यशः। यैर्निबद्धानि काव्यानि ये वा काव्येषु कीर्तिताः ॥१॥
(कस्यचित्कवे.) ___“वे पुण्यात्मा रससिद्ध कवीश्वर जयवन्त हैं, जिनके यशरूपी शरी*रको कमी जरामरणरूप भय नहीं घेरता ॥ १॥" ___ "वे महात्मा पुरुष धन्य है, और उन्हींका यश ससारमें स्थिर है, जिन्होंने काव्योंकी रचना की है । अथवा जिनकी काव्योंमें कीर्ति गाई गई है ॥ २॥"
काशीवासी कविवर बाबू वृन्दावनजीका पौगलिक शरीर आज ससारमें नहीं है। उसका अग्निसंस्कार हुए न्यूनाधिक ५० वर्ष वीत गये । परन्तु * उनका यश-शरीर ज्यों का सो किंबहुना उससे भी अधिक प्रभावशालीरुपमें
विराजमान है। और जवतक हिन्दीभाषा तथा उसके जाननेवाले है, तअवतक अजर अमर रहेगा । जो चिरस्थायी यश कवियोंको उनकी प्रतिभा-१
प्रसूत कवितासे प्राप्त होता है, वह यश राजाओंको महाराजाओको तथा । कुवेरसदृश धनियाँको अपना सर्वख लुटा देनेपर भी नहीं मिल सकता। है । कविवर वृन्दावनजीने चार पाच ग्रन्थोंकी रचना करके जैमी कीर्ति * सम्पादन की है, क्या कविताके सिवाय और कोई द्वार ऐसा है, जिससे
वैसी कीर्ति प्राप्त हो सकै ? हम तो कहेंगे कि नहीं । महात्मा गृन्दावन-1 जीको धन्य है, जिनका यश उनके उत्तमोत्तम काव्योंकी रचनाके कारण आज प्रत्येक जैनीकी जिज्ञापर नृत्य कर रहा है।