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वृन्दावनविलास* तासु ज्वाब जयचन्दजी, लिखौ सुजुक्त वनाय । * सोऊ इत लिख भेजियो, कृपाभाव दरसाय ।।
तोटक। * निज चेतनमें कृतजोति लखो । पर द्रव्यनिसोंन मिलो परखो।। । अनुमौरस तास विलाश करो । निरद्वंद दशा धरि मुक्ति बरो॥
चौपाई।
| रिषभदास पुनि घासीराम । और पंच जे सुगुननिधान ।। विगति विगति श्रीजयति जिनंद'। कहियौ सबसों धरि आनंद। धर्मचन्द्र मम पिता पुनीत । तुमको करहिं जुहार सुमीत।। राखो नित चित वृषअनुराग । शिक्षापत्र लिखो बड़भाग॥ ।
सुमुखी। दो शशि जम्बु सुदीपविखै । हैं परतच्छ अनादि अखै। । त्यों वृषदीपविष शशि दो । दिल्लिय जयपुरमाहिं अहो॥ ।
दोहा। *संवत्सर विक्रम विगत, वेर्दै उरग गर्ज चन्द । । कुज तिथि पंचमि जेठकी, लिख्यौ पत्र सुखकन्द ॥ ३५ ॥ ।
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* जेठवदी पचमी मगलवार सवत् १८८४ । * पत्रमें वार्तारूप * प्रयोजन भी लिखा है । सो इहा तो इस चिट्ठीका नकल लिखना भी उ-१ " चित नहीं था। परन्तु जो प्रश्न लिखा था, तिन प्रश्नोंका जवाब आया। । सो नकल लिखना योग्य जाना । तब प्रश्नावली लिखा है । (वृन्दावन)।