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________________ १०४ वृन्दावनविलास- , अथ दंडकपकरण । दंडक ( मात्रा ३२) • सीता अहार कीन्हों तयार, तब रामद्वार पेबै उदार । *ताही सु वार दो मुनि पधार, हैं तपागार आकाशचार ॥ बलि हर्ष धार जानकी लार, पूजे प्रचार आठों प्रकार । * भरि भक्तिभार दीनों अहार, कांतार चार दंडक मझार १०११ 'अशोकपुष्पमंजिरी। (क्रमसे एक गुरु एक लघु, ३१ वर्ण) केवली जिनेशकी प्रभावना अचिंत मित, कंजपै रहै सु अंतरिच्छ पादकंजरी। मूष औ विडाल मोर व्याल बैर टाल टाल, हैं जहां सुमीत हे निचीत भीति मंजरी ॥ अंगहीन अंग पाय हर्ष सो कहा न जाय, नैनहीन नैन पाय मंजु कंज खंजरी। और प्रातिहार्यकी कथा कहा कहै सु 'वृंद, ___ शोक थोकको हरै अशोकपुष्पमंजरी ॥ १०॥ अनंगशेखर । . (क्रमसे एक लघु एक गुरु, वर्ण ३२) जिनिंदके मुखारविंदसों खिरै त्रिकाल शब्द, अब्दसी अनच्छरी अनिच्छिता धरे हैं। न होठ जीम हालई न खेद वेद चालई, अलौकिकी अदोप घोष सौखसों भरे रहै ॥
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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