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वृन्दावनविलासनिजहीमें आप सु आपीको, वह आपी पाये राचा है। सब पानीका हित वानीका पत, सोई शंभू सांचा है॥७॥
झूलना ( मात्रा ३७) नेह औ मोहके खंभ जामें लगे, चौकड़ी चार डोरी सुहावै ।। चाहकी पाटरी जासपै है परी, पुण्य औ पाप,जीको झुलावै ॥ * सात राजू अधो सात ऊंचे चलै, सर्व संसारको सो भमावै ।। * एकसम्यक्तज्ञानी यही झूलना, कूदिके 'वृन्द' भवपार जावै ७९ ॥
नरिंद अथवा जोगीरासा ( मात्रा २८) समकित सहित सुव्रत निरवाहै, राजनीति मन लावै ।। श्रीजिनराज-चरन नित पूजै, मुनि लखि भगति बढ़ावै ॥1 चार प्रकार दान नित देकै, सुरपुर महल बनावै। न्यायसमेत प्रजा प्रतिपालै, सो नरिंद सुख पावै ॥८॥
घत्तानंद ( मात्रा ३२) __ जो चारउ पत्ता चार अपत्ता धत्तविरत्ता हत्त करै। ___ सो आतमसत्ता शुद्ध अहत्ता पाय सु घत्तानन्द भरै ॥८॥
सवैया ( मात्रा ३१) वीस अंक परमित गनधर धुनि, पूरव चौदह अंक प्रमान ।। । उनतिस अंक मनुष सब सैनी, दश कुलकोड़ जोड़ ठहरान ॥
सरसों कुंड छियाल पल्लके, कुंडरोम पैतालिस मान । * अंकसवैया विधिसों लिखिके, परखोहरखो 'वृंद' सयान॥८॥
१घातिया। २ अघातिया । ३ इसे बीर भी कहते हैं । आल्हा, पवारा इसी ढंगपर होता है।