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वृन्दावनविलास
विगाहा।
( १२-१५.१२.१८) *श्रीजिनजन्म उछाहा, गिरिंदपै हो रहा आहा । शोभासिंधु अथाहा, भविगाहा इन्द्रने लिया लाहा ॥
सिंहनी।
(१२-२०-१२-१८) * समवसरनमहँ देखो, जंतूजाती विरोधको सब टाले ।। अदभुत अकथ अलेखो , हरिनीको वाल सिंहनी पालै ॥ !
गाहिनी।
(१२-१८-१२-२०) *चेतनरस-लवलीना, निज अनुभूतिप्रदायिनी शुद्धी। वंदत 'वृन्द' प्रवीना, जे आगमध्यातमवगाहिनी बुद्धी ॥
इति गायाप्रकरण।
अथ मात्रिकछन्दप्रकरण ।
दोहा । ( १३.११.१३-११) नेमि खामि निरवानथल, शोभत गढ़ गिरनारि । वंदों सोरठदेशमें, दो हानि शिर घारि ॥ ६७ ॥
सोरठा (११-१३-११-११) शोभत गढ़ गिरनारि, नेमिखामि निरवानथल । दोहायनि शिरधारि, वंदो सोरठ देगमें ॥ ६८॥
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१इसे उद्गीति तथा विगाथा भी रहा। ------ ------Pr
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