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________________ - 380 आध्यात्मिक आलोक धर्म एकान्त मंगलमय है । आत्मा, समाज, देश तथा अखिल विश्व का कल्याणकर्ता और त्राता है । मगर आज धर्म की ज्योति मंद हो रही है। लोग धर्म के वास्तविक मर्म को समझने का प्रयत्न नहीं करते और जो थोड़ा-बहुत समझते हैं, उसे आचरण में नहीं लाते । उनका सवाल है कि धर्म के आचरण से उनके लौकिक कार्यों में बाधा उत्पन्न होगी, मगर यह धारणा नितान्त भ्रमपूर्ण है। धर्म लोक व्यवहार का विरोधी नहीं है प्रत्युत उसे सही दिशा देने का प्रयत्न करता है । उसे हितकर और सुखकर बनाता है। विवेक से काम लिया जाय तो कौतुहल, श्रृंगार, सजावट और दिलबहलाव के लिए की जाने वाली निरर्थक हिंसा से मनुष्य सहज ही बच सकता है । ऐसा करके वह अनेक अनर्थों से बचेगा और राष्ट्र का हित करने में भी अपना योगदान कर सकेगा । फटाकों के बदले बच्चों को यदि दूसरे खिलौने दे दिये जाएं तो क्या उनका मनोरंजन नहीं होगा ? फटाकों से बच्चों को कोई शिक्षा नहीं मिलती । जीवन-निर्माण में भी कोई सहायता नहीं मिलती । उनकी बुद्धि का विकास नहीं होता। उलटे उनके झुलस जाने या जल जाने का खतरा रहता है । समझदार माता-पिता अपने बालकों को संकट में डालने का कार्य नहीं करते । किस उम्र के बालक को कौनसा खिलौना देना चाहिए जिससे उसका बौद्धिक विकास हो सके, इस बात को भली-भाति समझ कर जो माता-पिता विवेक से काम लेते हैं, वे ही अपनी सन्तान के सच्चे हितैषी हैं । मगर यहां तो बच्चे और नौजवान सभी एक घाट पानी पीते हैं । छोटे बच्चे तो साधारण और छोटे फटाके ही छोड़ते हैं मगर समझदार नौजवान बड़े-बड़े फटाके छोड़ कर आनन्द का अनुभव करते हैं । अगर बड़े-बूढ़े लोग सभी दृष्टियों से हानिकारक ऐसी वस्तुओं का इस्तेमाल करना छोड़ दें तो समाज के गलत रिवाज बड़ी सरलता से खत्म हो सकते हैं। __ आज शासन का रवैया भी अजीब-सा है । एक ओर शासन के सूत्रधार बचत-योजना का निर्माण और प्रचार करते हैं और लोगों को चीजों के व्यर्थ उपयोग से बचने का उपदेश देते हैं, और दूसरी ओर फटाके जैसी चीजों के निर्माण की अनुमति देते हैं और उनके लिए बारूद सुलभ करते हैं । करोड़ों की सम्पत्ति इन फटाकों के रूप में राख बन जाती है और उसके विषैले धुंए से सारा वातावरण विषाक्त बन जाता है। सरकार क्यों इस और ध्यान नहीं देती-यह आश्चर्य की बात है। दिवाली और होली जैसे त्योहारों पर लोग विशेष रूप से मदिरापान करते हैं। स्वतन्त्रता प्राप्ति से पहले गांधीजी ने मदिरापान बन्द करने के लिए प्रचार और
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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