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________________ - आध्यात्मिक आलोक 379 (७) लक्ख वाणिज्ने ( लाक्षा वाणिज्य )-लाख का व्यापार करना लाक्षावाणिज्य कहलाता है, इस व्यापार में लाखों जीवों की हिंसा होती है । गोंद वृक्ष का रस है, चपड़ी श्लेपक (चिपकाने वालो या जोड़ने वाली ) वस्तु है । रबड़ भी ऐसी वस्तु है । इन चीजों में चिपक कर जीव-जन्तु प्राणों से हाथ धो बैठते हैं । अतएव लाख का व्यापार श्रावक के लिए त्याज्य है। इन कर्मादानों में हिंसा को बहुलता को दृष्टि रखी गई है । अतएव दांत या लाख के वाणिज्य के समान जिन अन्य वस्तुओं के व्यापार से प्रचुर हिंसा होतो है, उन्हें भी यथायोग्य इन्हीं वाणिज्यों में शुमार कर लेना चाहिए और उनके व्यापार से भी बचना चाहिए। बारूद भी इसी प्रकार की हिंसाकारक वस्तु है। उसकी बनी अनेक वस्तुओं से बहुत हिंसा होतो है । बारूद से दुकानों और घरों के जल जाने की घटनाएं प्रायः पढ़ने-सुनने में आती ही रहती हैं। जिन दुकानों में बारूद की बनी वस्तुओं का विक्रय होता है, उनमें जब कभी विस्फोट हो जाता है तो आस-पास की दुकानें, मकान और मनुष्य तक जल कर भस्म हो जाते हैं । अतएव हिंसाकारी पदार्थों के व्यापार से श्रावक को सदैव बचते रहना चाहिए। ऐसे धधै करके मनुष्य जो धन एकत्र करता है, वह धन नहीं विष है, जो घोर अनर्थ का कारण है। - कई दुकानदार सार्वजनिक उपयोग की अनेक वस्तुएं अपनी दुकान में रखते हैं और फटाके भी बेचने के लिए रख लेते हैं । सोचने की बात है कि भला फटाकों से वे कितना धन संचित कर लेंगे? वास्तव में इस प्रकार के व्यापार से लाभ कम और हानि अधिक होती है । सामाजिक और राष्ट्रीय हानि भी इससे कम नहीं है । प्रतिवर्ष दीपावली आदि के अवसरों पर न जाने कितने रुपयों की वारूद फटाके आदि के रूप में भस्म कर दी जाती है। करोड़ों का स्वाहा हो जाता है। लाभ तो कुछ होना नहीं, हानि ही हानि होती है । करोड़ों की सम्पत्ति नष्ट होती है और सैकड़ों बालक जल जाते और जल कर मर जाते हैं । एक और शिकायत की जाती है कि देश की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है और दूसरी ओर इतनी बड़ी धनराशि एक खतरनाक और हत्याकारी मनोरंजन के लिए नष्ट कर दी जाती है । फटाके बनाने में जो सम्पदा स्वाहा होती है, उसे अच्छे कार्य में लगाया जाय तो देश का भला हो सकता है। . किन्तु खेद की बात है कि आजकल त्योहारों में दामाद को सौगात में मिष्ठान के साथ फटाके भी भेज दिये जाते हैं। क्या जमाई के सम्मान करने का यह अच्छा तरीका है ? किन्तु कौन इस पर विचार करे ? आज लोगों का विवेकदीपक बुझ रहा है । बुन्द्रि पर पर्दा पड़ रहा है ।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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