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________________ आध्यात्मिक आलोक 381 आन्दोलन किया था, किन्तु अब देश स्वतन्त्र हो गया है और गांधीजी के अनुयायियों के ही हाथ में सत्ता है फिर भी वह बन्द नहीं हो रहा । क्योंकि मद्यनिषेध से सरकार की आय में कमी होगी और मद्यपान करने वाले लोग रुष्ट हो जाएंगे तो 'वोट' नहीं देंगे, इस भय से सरकार अब इस ओर ध्यान नहीं देती । कहावत है -'चोरां कुतियां मिल गये, पहरा किसका देय ।' देश राजनीतिक दृष्टि से स्वाधीन हुआ तो भारतीय नेताओं ने प्रजातन्त्र की पद्धति पसन्द की । इस पद्धति में प्रजा के नुमाइंदों के हाथ में शासन रहता है । यह पद्धति अन्यान्य शासन पद्धतियों से उत्तम मानी गई है मगर इसकी सफलता के लिए प्रजा का सुशिक्षित और योग्य होना भी आवश्यक है । जब तक जनसाधारण में नैतिक भावना उच्चकोटि की न हो, आदर्शों और सिद्धान्तों की समझ न हो और व्यापक राष्ट्रहित को व्यक्तिगत हित से ऊपर समझने की प्रवृत्ति न हो तो तब तक इस शासन पद्धति की सफलता संदिग्ध ही रहती है । आज देश में प्रजातन्त्र के प्रति जो अनास्था उत्पन्न हो रही है, उसका कारण यही है कि अशिक्षित जनता से वोट प्राप्त करने के लिए उसको नाराज नहीं किया जा सकता और उसमें घुसी हुई मदिरापान जैसी बुराइयों के विरुद्ध कदम उठाने का भी साहस नहीं किया जा सकता। इससे देश को हानि पहुँचती है । बालक कितना ही रुष्ट क्यों न हो, माता-पिता का कर्तव्य है कि वह उसे कुमार्ग पर जाने से रोके । __ राष्ट्र की स्वाधीनता के लिए लम्बे काल तक संघर्ष चलता रहा । इस संघर्ष में भाग लेने वालों ने लाठियों की मार झेली, गोलियां खाई, कारावास के कष्ट सहन किए, कइयों ने अपना सर्वस्व होम दिया । ये सब प्रतिकूल उपसर्ग थे, जिन्हें उन्हान शान्ति के साथ सहन किया । किन्तु जब संघर्ष के फलस्वरूप स्वतन्त्रता प्राप्त हुई और इन योद्धाओं को शासन सत्ता मिली तो उनमें से कइयों का अधःपतन हो गया, कई भ्रष्टाचार में लिप्त हो गए और स्वार्थ साधने लगे। इस प्रकार अनुकूल उपसर्ग को वे नहीं सहन कर सके । सिंह की गुफा में तपस्या करने वाले मुनिराज की भी यही स्थिति हुई । प्रतिकूल परीषह को जीतने में तो वे समर्थ सिद्ध हुए मगर अनुकूल परीषह आते ही विचलित हो गए। अपनी मर्यादा से बाहर होकर रत्नकम्बल लेने के लिए वे नेपाल पहुँचे । रास्ते में कम्बल लूट गया तो दूसरी बार याचना करने में भी उन्होंने संकोच नहीं किया । कठिन यात्रा करके वे पाटलीपुत्र पहँचे और मन ही मन अपने पुरुषार्थ को स्वयं सराहने लगे। मगर रूपकोषा ने क्षण भर में सारा गुड़ गोवर कर दिया । उसने रत्नकंवल से पैर पौंछ कर उसे यों फेंक दिया मानों वह कोई फटा हुआ
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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