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________________ 248 आध्यात्मिक आलोक (२) आसुरी सम्पत्ति-हिंसा, असत्य, चौर्य, अब्रह्मचर्य, ममत्व मूर्जा आदि दुर्गुण, जो आत्मा को अधःपतन की ओर ले जाते हैं, इस कोटि में गिने जाते हैं। - मुनिराज ने रूपकोषा को आसुरी सम्पत्ति के बदले दैवी सम्पत्ति की स्वामिनी बनाया और श्राविकाधर्म की दीक्षा दे दी । उसके हृदय की आकुलता, वासना, अशान्ति और सन्तप्तता दूर हो गई । त्याग में जो अद्भुत अवर्णनीय आनन्द और तृप्ति है, उसे त्यागी ही अनुभव कर सकता है, वह उसे प्राप्त हो गई । उसका जीवन साधना के पथ पर अग्रसर हुआ । रूपकोषा की तरह जो अपने जीवन को आनन्द और शान्तिमय बनाना चाहते हैं, उन्हें वासना के पकिल पथ का परित्याग करके साधना के राजमार्ग की ओर मुड़ना चाहिए और उसी पर अग्रसर होना चाहिए । दुर्बल मनोवृत्ति को त्याग कर . सबल और शुभ मनोवृत्ति को जगाना चाहिए। ऐसा करने से ही परम मंगल का द्वार खुलता है और इहलोक तथा परलोक आनन्दमय बनता है।
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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