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________________ [४७] . अस्तेय के अतिचार ज्ञानियों के अन्तःकरण में संसार के लघु से लघु और बड़े से बड़े जीवों के प्रति करुणा और उनकी मंगलकामना का सागर लहराता रहता है । उनका हृदय माता के हृदय के समान वात्सल्य से परिपूर्ण होता है । ज्ञानी और माता के हृदय के वात्सल्य में यदि अन्तर है तो यही कि माता का वात्सल्य खण्डित होता है-अपनी सन्तति तक ही सीमित रहता है और उसमें ज्ञान अथवा अज्ञान रूप में स्वार्थ की भावना का सम्मिश्रण होता है, किन्तु ज्ञानी के हृदय के वात्सल्य में ये दोनों चीजें नहीं होती । उनका वात्सल्य विश्वव्यापी होता है । वे जगत् के प्रत्येक छोटे-बड़े, परिचित-अपरिचित, उपकारक अपकारक, विकसित-अविकसित या अर्धविकसित प्राणी पर समान वात्सल्य रखते हैं। उसमें किसी भी प्रकार का स्वार्थ नहीं होता । जगत् का प्रत्येक जीव ज्ञानी पुरुष का बन्धु है । जीवन में जब पूर्ण रूप से बन्धुभाव उदित हो जाता है तो संघर्ष जैसी कोई स्थिति नहीं रहती, वैर-विरोध के लिए कोई अवकाश नहीं रह जाता । यही कारण है कि ज्ञानी पुरुष के हृदय रूपी हिमालय से करुणा, वात्सल्य और प्रेम की सहस्र-सहस्र धाराएं प्रवाहित होती रहती हैं और वे प्रत्येक जीवधारी को शीतलता और शान्ति से आप्लावित करती रहती हैं। इससे ज्ञानी का जीवन भी भारी नहीं, हल्का बनता है । __ज्ञानी अपने लिए जो जीवन-नीति निर्धारित करते हैं, वही प्रत्येक मानव के लिए योग्य और उचित नीति है । प्रत्येक मनुष्य सब के प्रति प्रीति और अहिंसा की भावना रखकर अपनी जीवनयात्रा सरलता व सुगमता से चला सकता है । आघात-प्रत्याघात से ही जीवन चलेगा, ऐसा समझना भ्रम है । सावधानी के साथ चलने वाला सभी प्राणियों के प्रति समबुद्धि रख कर जीवन चला सकता है । समत्वबुद्धि ही भावकरुणा है । किसी प्राणी को कष्ट न पहुँचाना, छेदन-भेदन न
SR No.010709
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages599
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size28 MB
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