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पद्मिनी चरित्र चौपई]
[२५ आपही वात कहें हसें म० वेसणो आप ही लेह लाल विहु आलोच करता विचै म० जावै चतुर न तेह लाल० ॥५॥ गैरमहेंल नृप मंदिरें म० एकते नर नारि लाल लाज समें जावई जिको म० ते मूरिख निरधार लाल० ॥६।। निभ्रंछयो राघव भणी म० काढ्यो हाथ ज साहि लाल. ‘जाता मुँइ भारी पडी म० पहुतो निज घर माहि लाल०॥णा राजा रूठो इम कहें म० पदमणी देखी व्यास लाल० आँखि कढावं एहनी म० तो मुझ ने स्याबास लाल० ॥८॥ वात सुणी राजा तणी म० एम विचार व्यास लाल० राजा मित्र न जाणीइ म० सिंह किसो वेसास लाल० ॥६॥ काके सौचं, द्यूतकारेषु सत्यं ज्ञाने भ्रातिः स्त्रीषु कामोपशाति क्लीवेधैर्य मद्यपे तत्वचिन्ता, राजा मित्रो केन दृष्टं श्रुतं वा ।। अत्यासन्न विनासाय दूरस्था निष्फला भवेत् । सेव्यता मध्यम भावेन राजा वन्हि गुरुस्त्रियः राजा री रीस भली नहीं म०चितचमक्यो राघव व्यास लाल० न हुवे दोन्यु वातड़ी म० एक वैर में वास लाल० ॥१०॥ आलोचे मन आपणे म० छोड्यो गढ चीतोड़ लाल० द्रव्य देई नई नीकल्या म० राघव चेतन जोड़ लाल० ॥११॥ त्यजेदेकं कुलस्यर्थे, ग्रामार्थे च कुलंत्यजेत् । ग्रामं जनपदस्यार्थ, आत्मार्थपृथिवी त्यजेत्