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[ पद्मिनी चरित्र चौपई
राघव चेतन दिल्ली गमन नंदिन थोड़े दिल्ली गयो म० नगर हुओ जस नाम लाल योतिष जाणे अति घणो मन० विविध विद्या गुण धाम लाल० ॥१२।। शास्त्र अनेक वाचे भणे म० नव रस पोपइ नित लाल० सौ सौ अरथ नवा कर म० चतुरा मोहें चित्त लाल० ॥१३।। वल पूरो विद्या तणो म० तेहने स्यो परदेश लाल 'लालचन्द' कहै सांभलो म० विद्या मान नरेश लाल० ॥१४॥
शाही दरवार प्रवेश
दोहा सद्विद्या धन सासतो, विद्या रूप सुहाग। मान महातम' जस अधिक, विद्या मोटो भाग ।।१।। पातिस्याह दिल्ली तदा, जास अखंडित आण । अविचल तेज अलावदी, प्रतपो वारह भाण ||२|| एक छत्र महि भोग, जस नव खडे हि नाम । सुर नरपति जाथें डरे, सेवकहि कर सिलाम ।।३।। सेना सतावीस लख, भंजै अरि भड़वाह । तिण सुणीया बाभण गुणी, तेडायो धरि चाह ॥४॥ श्लोक कवित अभिनव करी, आया आणंद पूर। आदर सुंआसीस चै, हजरति साहि हजूर ॥शा
१ महतजस भोग सुख