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पद्मिनी चरित्र चौपई
ढाल (३) अलबेल्या नो। कहिनइ किंहाथी आविया रे लाल ए चालक श्लोक कवित्त कथा करीरेलाल, रीझ्यो निपट' पतिसाहि रेसो। सकल लोक धन-धन कह रे लाल, विद्यावंत अथाह रेसो० ॥१॥ चतुर पंडित ब्राह्मण गुणनिलो' रे लाल । आकणी पातिसाहि दिल्ली तणो रे लाल, ये नित मोज अनेक रे सोभागी गाम पाचस अति भला रे लाल,
___ मनमइं धरीय विवेक रे सोभागी ॥२॥च॥ इम रहता आणंद स्युरे लाल, दिल्लीपति रै पास रे सोभागी। एक दिन राणा जी दीयो रे लाल,
तेह वैर चितारें व्यास रे सोभागी ॥३॥चा
राघव चेतन का प्रतिशोध षड़यन्त्र
वयर वालू हिवें माहरो रे लाल, छूड़ायो गढ गेहरे सोक तो काढू चित्रकूट थी रे लाल, अपहरी पदमणी तेहरे सो०४ सैंमुखी काम न कीजिइं रे लाल, जे पर पूठे थायरे सो० आलोची मन आपणे रे लाल, माड्यो एह उपाय रे सो० ॥शा भाईपणो एक भाट स्यु रे लाल, खोजा स्युमन खंति रे सो मान दान देई घणो रे लाल, मित्र कीयो एकति रे सो० ॥६॥ साहि तणे दरवार में रे लाल, पदमणि केरी बात रे सो० जिण तिण भाति काढज्यो रे लाल, मुझ मन एह सुहात रे सो० ॥णा,
१~मानि २ गुणी